उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन.
कंकरीट के वन
उदास मन.
मरने न दो
परम्पराएँ कभी
बचोगे तभी
परम्पराएँ कभी
बचोगे तभी
मिलने भी दो
राम और ईसा को
भिन्न हैं कहाँ.
राम और ईसा को
भिन्न हैं कहाँ.
छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध.
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध.
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा.
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा.
–डा० जगदीश व्योम
1 comment:
aapke haiku jeevan ke yathartha se judhe hue hain
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