07 April 2005

हाइकु

उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन.

मरने न दो
परम्पराएँ कभी
बचोगे तभी

मिलने भी दो
राम और ईसा को
भिन्न हैं कहाँ.

छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध.


कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा.
–डा० जगदीश व्योम

1 comment:

Unknown said...

aapke haiku jeevan ke yathartha se judhe hue hain