08 April 2005

बहते जल के साथ न बह

गजल

बहते जल के साथ न बह
कोशिश करके मन की कह।

मौसम ने तेवर बदले
कुछ तो होगी खास बज़ह।

कुछ तो खतरे होंगे ही
चाहे जहाँ कहीं भी रह।

लोग तूझे कायर समझें
इतने अत्याचार न सह।

झूठ कपट मक्कारी का
चारण बनकर गजल न कह।

-डॉ॰ जगदीश व्योम

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