22 August 2006

छन्द [ रसखान की भाषा ]



माटी की सोंधी सुगंध सनी
मनमोहिनी है रसखान की भाषा ।
शब्द ढरे, निखरे, सुथरे भई
हीरकनी रसखान की भाषा ।
रीझी है कान्ह की कामरिया पै
बनी बँसुरी रसखान की भाषा ।
स्याम नचैं छछिया भरि छाछ पै
देखि हँसै रसखान की भाषा ।।

-डॉ॰ जगदीश व्योम

5 comments:

प्रेमलता पांडे said...

व्योम जी छंद के साथ-साथ चित्र मनमोहक है,परंतु अँगरेजी में लिखा GOPAL NATKHAT हिंदी में कीजिएगा। उसके बाद बेशक मेरी टिप्पणी हटा दें।

Laxmi said...

बहुत सुन्दर लिखा है, व्योम जी। मैं भी निकट भविष्य में रसखान पर एक पोस्ट लिखने वाला हूँ।

Prabhakar Pandey said...

अति सुंदर

-प्रभाकर पाण्डेय

Prabhakar Pandey said...

अति सुंदर !

Prabhakar Pandey said...

अति सुंदर !