21 October 2006

बाँध रोशनी की गठरी : नवगीत

सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ !!

बाँध रोशनी की गठरी
फिर आई दीवाली।।

पूरी रात चले हम
लेकिन मंज़िल नहीं मिली
लौट-फेर आ गए वहीं
पगडंडी थी नकली
सफर गाँव का और
अंधेरे की चादर काली।
बाँध रोशनी की गठरी
फिर आई दीवाली।।

ताल ठोंक कर तम के दानव
कितने खड़े हुए
नन्हें दीप जुटाकर साहस
कब से अड़े हुए
हवा, समय का फेर समझकर
बजा रही ताली।
बाँध रोशनी की गठरी
फिर आई दीवाली।।

लक्ष्य हेतु जो चला कारवाँ
कितने भेद हुए
रामराज की बातें सुन-सुन
बाल सफेद हुए
ज्वार ज्योति का उठे
प्रतीक्षा दिग-दिगन्त वाली।
बाँध रोशनी की गठरी
फिर आई दीवाली।।

लड़ते-लड़ते दीप अगर
तम से, थक जाएगा
जुगुनू है तैयार, अँधेरे से
भिड़ जाएगा
विहँसा व्योम देख दीपक की
अद्भुत रख वाली।
बाँध रोशनी की गठरी
फिर आई दीवाली।।

-डॉ० जगदीश व्योम

3 comments:

Anonymous said...

आपको दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

Anonymous said...

Bahut hee khoobsoorat kavitaa hai vyom ji.

Ripudaman

Mohinder56 said...

बहुत अच्छी रचना लगी आप कि दिपावली पर लिखी हुयी

कृप्या http://dilkadarpan.blogspot.com पर पधार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करें
धन्यवाद