चढ़ती धूप
उतरता कुहरा
कोंपल अँखुआई
नए वर्ष में
नवगीतों की
फिर बगिया लहराई
मन कुरंग
भर रहा कुलाँचें
बहकी
गंध-भरी पुरवाई
ठिठुरन बढ़ी
दिशाएँ बाधित
चन्द्र-ग्रहण ने की अगुआई
फिर से आज बधाई !
सबको
सौ-सौ बार बधाई !!
सारस जोड़ी
लगीं उतरने
होने लगीं कुलेलें
विगत साल की
उलझी गुत्थीं
चोंच मिलाकर खोलें
मंत्र-मुग्ध हो गई किसानिन
सकुची, खड़ी, लजाई !
फिर से आज बधाई!
सबको
सौ-सौ बार बधाई !!
-डा० व्योम
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